उच्च शिक्षा में हो विषयों का संगम, एकीकृत पाठ्यक्रम के लिए एक नए सोच वाली वैश्विक पहल जरूरी

एसटीईएम पाठ्यक्रम के स्नातकों को रचनात्मक समाधान की क्षमता के लिए सामाजिक स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति शिक्षित होना चाहिए और विभिन्न सांस्कृतिक सामाजिक पर्यावरणीय एवं आर्थिक संदर्भों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए। उच्च शिक्षा में केवल एकीकृत दृष्टिकोण ही बौद्धिक जुड़ाव नीति-आधारित समाधान और गतिशीलता संभव कर सकता है।

मनीष पालीवाल/स्वाति पाराशर : दुनिया भर में शैक्षणिक संरचना बाजार मूल्यों, उच्च शिक्षा के निजीकरण और उपयोगितावाद से प्रेरित है। इस शैक्षणिक परिवेश से निकले हुए स्नातकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अल्प समय में ही कामकाजी आबादी का हिस्सा बनें। एक सामान्य धारणा है कि एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) या वाणिज्य की तुलना में कला और समाज विज्ञान के स्नातकों के लिए व्यावसायिक अवसर अपेक्षाकृत कम होते हैं। कोविड महामारी ने इस धारणा को और मजबूत किया है। परिणामस्वरूप कला और मानविकी संकायों के संसाधनों में भारी कटौती हुई है। वैश्विक स्तर पर कला और मानविकी से जुड़े कई कार्यक्रमों-पाठ्यक्रमों को बंद भी कर दिया गया है। होना तो यही चाहिए कि तकनीक और कला एवं मानविकी के बीच ताल मिलाई जाए।

https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-there-should-be-a-confluence-of-subjects-in-higher-education-23091120.html

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